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अम्बेडकर अस्पताल के चिकित्सकों ने किया दुर्लभ सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी का सफल ऑपरेशन — माँ और शिशु दोनों सुरक्षित

Healthbhaskar.com: रायपुर ,17 अक्टूबर 2025 जीवन बचाने की भावना, मानवीय करुणा और चिकित्सा कौशल का अद्भुत संगम का ऐसा उदाहरण रायपुर के डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय और पं. जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय की चिकित्सक टीम ने पेश किया है। अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की डॉक्टरों ने एक ऐसी महिला का जीवन बचाया, जो “सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी” जैसी अत्यंत दुर्लभ स्थिति से गुजर रही थी। इस केस को न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि देश और दुनिया के सबसे अनोखे मामलों में गिना जा रहा है।

माँ और शिशु दोनों सुरक्षित

इस मामले में 40 वर्षीय महिला के गर्भ में भ्रूण गर्भाशय में नहीं, बल्कि पेट की गुहा (एब्डोमिनल कैविटी) में विकसित हो रहा था। डॉक्टरों ने बताया कि इस तरह की गर्भावस्था बेहद खतरनाक होती है, क्योंकि इसमें माँ और शिशु दोनों की जान पर खतरा रहता है,फिर भी अम्बेडकर अस्पताल की टीम ने न केवल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया, बल्कि माँ और शिशु दोनों को सुरक्षित जीवनदान दिया गया।

गर्भावस्था में एंजियोप्लास्टी पहला मामला

यह मामला इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान महिला को हार्ट की गंभीर समस्या हुई और उसे आपातकालीन एंजियोप्लास्टी (Angioplasty) से गुजरना पड़ा। डॉक्टरों ने अत्यंत सावधानी के साथ यह प्रक्रिया की ताकि भ्रूण को कोई नुकसान न पहुँचे। यह छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि देश के मेडिकल इतिहास का पहला मामला है, जिसमें गर्भवती महिला की एंजियोप्लास्टी और सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी डिलीवरी (Secondary Abdominal Pregnancy Delivery) दोनों सफलतापूर्वक की गईं।

चिकित्सकीय टीम की अभूतपूर्व उपलब्धि

स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल और डॉ. रुचि किशोर गुप्ता के नेतृत्व में बनी मल्टीडिसिप्लिनरी टीम ने ऑपरेशन को सफलता तक पहुँचाया। ऑपरेशन के दौरान यह पाया गया कि शिशु गर्भाशय के बाहर पेट में विकसित हो रहा था और उसकी आंवल (प्लेसेंटा) कई महत्वपूर्ण अंगों से जुड़ी थी। इसके बावजूद टीम ने सावधानीपूर्वक शिशु को सुरक्षित बाहर निकाला। भारी रक्तस्राव की संभावना को ध्यान में रखते हुए डॉक्टरों को गर्भाशय भी निकालना पड़ा, लेकिन माँ की जान बचा ली गई।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय और पं. जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय की गौरवशाली चिकित्सक टीम में डॉ. सुमा एक्का, डाॅ. नीलम सिंह, डाॅ. रुमी, डाॅ. शशांक, डाॅ. अमृता, और डॉ. अमित अग्रवाल शामिल थे। ऑपरेशन के बाद भी कार्डियोलॉजी, सर्जरी और मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञों ने मरीज की स्थिति पर लगातार निगरानी बनायीं रखी।

प्रेशियस चाइल्ड -एक माँ के सपनों का पुनर्जन्म

डॉक्टरों ने बताया कि यह बच्चा महिला के लिए “प्रेशियस चाइल्ड” है। कई सालों से वह संतान सुख से वंचित थी। कुछ वर्ष पहले उसके पहले बच्चे की मृत्यु डाउन सिंड्रोम और हृदय रोग के कारण हो गई थी। ऐसे में इस बच्चे का जन्म न केवल एक चिकित्सकीय उपलब्धि है बल्कि एक माँ के अधूरे सपनों का पुनर्जन्म भी है। अस्पताल की टीम ने जन्म के बाद पूरे एक महीने तक माँ और शिशु की सतत निगरानी की ताकि दोनों पूर्णत: स्वस्थ रहें।

दुर्लभ और ऐतिहासिक मामला

डॉ. ज्योति जायसवाल के अनुसार, “सेकेंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी (Secondary Abdominal Pregnancy)” एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का ऐसा दुर्लभ रूप है जिसमें भ्रूण गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में ठहरने के बाद पेट के अंगों पर जाकर विकसित होने लगता है। ऐसी स्थितियों में भ्रूण का जीवित रहना लगभग असंभव माना जाता है। लेकिन अम्बेडकर अस्पताल की टीम ने असंभव को संभव कर दिखाया। इस केस पर विस्तृत अध्ययन कर इसे इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल (International Medical Journal) में प्रकाशित करने की तैयारी की जा रही है ताकि यह विश्व स्तर पर भारतीय चिकित्सा कौशल की पहचान बने।

संस्थान की गौरवशाली परंपरा

पं. नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ. विवेक चौधरी और अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने इस उपलब्धि पर पूरी टीम को बधाई दी और कहा की यह सफलता सामूहिक समर्पण, त्वरित निर्णय और उत्कृष्ट टीमवर्क का परिणाम है। यह केस हमारे संस्थान की उस कार्य संस्कृति को दर्शाता है, जहाँ हर मरीज को जीवन बचाने की सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।

मानवता का प्रतीक

यह केस ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि चिकित्सा केवल विज्ञान नहीं, बल्कि सेवा और संवेदना का संगम है। अम्बेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने न सिर्फ एक माँ की जान बचाई, बल्कि उसे मातृत्व का अमूल्य सुख भी लौटाया और यही किसी भी डॉक्टर के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।

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