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विश्व स्तनपान सप्ताह: मातृत्व, पोषण और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में एक सशक्त कदम

Healthbhaskar.com: रायपुर 2 अगस्त 2025 ,हर साल अगस्त महीने में 1 se 7 अगस्त तक “विश्व स्तनपान सप्ताह” मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य स्तनपान के महत्व को बढ़ावा देना और स्तनपान कराने वाली माताओं को संबल प्रदान करना है। इस वर्ष 2025 का सूत्र “स्तनपान को बढ़ावा देना एवं एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) ने नवजात शिशुओं के लिए पहले छह माह तक केवल स्तनपान कराने की सिफारिश की है। यह न सिर्फ शून्य अपशिष्ट उत्पादन सुनिश्चित करता है बल्कि फार्मूला फीडिंग से उत्पन्न कार्बन फुटप्रिंट को भी कम करता है। इससे उन परिवारों पर आर्थिक बोझ भी घटता है जो कृत्रिम दूध पर निर्भर रहते हैं।

स्तनपान, प्रसवोत्तर अवसाद, कुछ प्रकार के कैंसर और हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में सहायक सिद्ध होता है। विशेषकर भारत जैसी अधिक जनसंख्या वाली आबादी के लिए, यह एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक के रूप में भी कार्य करता है। WHO का लक्ष्य है कि 2030 तक केवल स्तनपान की दर को 70% तक पहुंचाया जाए। इसके बाद, पूरक आहार के साथ शिशु के 2 वर्ष की आयु तक निरंतर स्तनपान की सलाह दी जाती है। यह बच्चों को संक्रमण से बचाता है, श्वसन संबंधी रोगों के जोखिम को 70% तक घटाता है, और मधुमेह, मोटापा जैसी बीमारियों की संभावना को भी कम करता है। कंगारू मदर केयर (KMC) एक ऐसी अवधारणा है जिसमें मां और नवजात शिशु के बीच त्वचा से त्वचा का संपर्क होता है। यह शिशु को आवश्यक गर्मी, पोषण और सुरक्षा प्रदान करता है तथा स्तनपान को बढ़ावा देता है।

डॉ. अमित बंजारा ,सचिव JDA रायपुर, ने विशेष चर्चा में बताया की छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में निवास करने वाला बैगा जनजातीय समुदाय (PVTGs), वैश्विक मंच पर मातृत्व की संवेदनशीलता, सहज और निर्भीक स्तनपान, एवं KMC की महत्ता को प्रखरता से प्रस्तुत करता है। उनकी यह संस्कृति मानव सभ्यता के विकास की दिशा में एक सशक्त प्रेरणा है, जहां मातृत्व केवल अधिकार नहीं बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में व्याप्त है। वर्तमान में, स्तनपान से जुड़े कई सामाजिक अवरोध जैसे रूढ़िवादी सोच, सामाजिक कलंक, आधुनिकता की विकृत परिभाषाएं, और स्तनपान को स्त्री सशक्तिकरण के विरुद्ध मानना यह सब आज भी स्तनपान की राह में रोड़े बनकर खड़े हैं। ऐसे में। हालांकि क्रैडल हाउस, लैंगिक संवेदनशील विमर्श, और नारी जीवन की प्रगति के कई प्रयास हो रहे हैं, फिर भी यह सफर लंबा है और सामूहिक सहभागिता की आवश्यकता है।

“नो ब्रा कैम्पेन”, जिसे हर वर्ष 13 अक्टूबर को मनाया जाता है, स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता और समर्थन को बढ़ावा देने वाला आंदोलन है। इसकी शुरुआत 2011 में हुई थी और बाद में इसे ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस माह के तहत अक्टूबर में स्थानांतरित किया गया। इसी प्रकार, एनएचएस इंग्लैंड द्वारा चलाया गया “दैट फीलिंग” अभियान महिलाओं को स्तन जांच हेतु प्रोत्साहित करता है। इस अभियान में भी बैगा समुदाय को ब्रांड एंबेसडर के रूप में सम्मिलित किया गया है, जो उनके संवेदनशील ज्ञान और मानव जीवन के प्रति समर्पण को दर्शाता है। हमारे संविधान के नीति निदेशक तत्व (DPSP), विशेष रूप से अनुच्छेद 47 और 39(क), नागरिकों के पोषण, स्वास्थ्य और जीवन स्तर को सुधारने हेतु राज्य की जिम्मेदारी तय करते हैं, जबकि अनुच्छेद 21 जीवन की गरिमा और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। बैगा जनजाति की आदिम परंपराएं, निर्भीक सामाजिक दृष्टिकोण, और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता, आज के वैश्विक भारत के लिए मार्गदर्शक बन रही हैं।

डॉ. अमित बंजारा ने अंत में कहा की व्यक्ति, संगठन और सरकारें मिलकर स्तनपान-अनुकूल नीतियों और व्यवहारों को प्रोत्साहित करें ताकि मातृत्व, शिशु स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संरक्षण की इस त्रिवेणी को समृद्ध कर स्वस्थ्य समाज का निर्माण हो सकता है।

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