मेडिकल शिक्षा का अनदेखा पहलू -अब बदलाव जरूरी

Healthbhaskar.com: रायपुर,23 जुलाई 2025 ,मेडिकल क्षेत्र को समाज का सबसे सम्मानित पेशा माना जाता है, लेकिन इसी क्षेत्र में अध्ययन कर रहे छात्र आज मानसिक दबाव, अकेलेपन, और शिक्षा प्रणाली की कठोरता से टूट रहे हैं। हर साल सैकड़ों मेडिकल छात्र आत्महत्या का प्रयास करते हैं ,कुछ सफल हो जाते हैं, कुछ जिंदगी की जंग हारने के कगार पर पहुंच जाते हैं।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) और विभिन्न स्वतंत्र अध्ययनों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर वर्ष औसतन 20 से 25 मेडिकल छात्र आत्महत्या से अपनी जान गंवाते हैं, जबकि 100 से अधिक छात्र आत्महत्या का प्रयास करते हैं। शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्या और रैगिंग की बढ़ती घटनाएं अब केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि एक व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का संकेत दे रही हैं। यह एक ऐसा विषय है, जिस पर समाज, सरकार, और संस्थानों को मिलकर त्वरित, ठोस और संवेदनशील पहल करनी होगी।

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (National Suicide Prevention Strategy) का उद्देश्य 2030 तक आत्महत्या दर में 10% की कमी लाना था, लेकिन वर्तमान परिस्थिति बेहद चिंताजनक है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की रिपोर्ट के अनुसार, 27.8% मेडिकल छात्र किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रहे हैं, जबकि तीन में से एक स्नातकोत्तर छात्र आत्महत्या के विचारों से पीड़ित है। बीते पांच वर्षों में 1,270 मेडिकल छात्रों ने कोर्स बीच में छोड़ दिया, जिनमें 153 एमबीबीएस व 1,117 पीजी छात्र शामिल हैं। 2018 से 2022 के बीच 122 छात्रों ने आत्महत्या की, जिसमें 4.4% आत्महत्या के प्रयास और 31% में आत्मघाती विचार शामिल रहे। मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 ने आत्महत्या के प्रयास को अपराध से बाहर किया और व्यापक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया, परंतु भारत में मानसिक स्वास्थ्य को अलग स्वास्थ्य सेवा इकाई के रूप में स्वीकारने में अभी भी सामाजिक संकोच बना हुआ है।

डॉ. रेशम सिंह (अध्यक्ष ) एवं डॉ. अमित बंजारा (सचिव) ,जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ,पंडित जौहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर से विशेष चर्चा में बताया की, रैगिंग जो किसी भी शारीरिक, मौखिक या मानसिक उत्पीड़न का स्वरूप हो सकती है,आज भी संस्थानों में व्याप्त है। 2009 में UGC द्वारा एंटी-रैगिंग समितियों के गठन के आदेश के बावजूद, रैगिंग की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। हर साल बस नाम बदल जाते हैं, पर खबरें वही रहती हैं। इसका कारण सिर्फ नियमों की कमी नहीं, बल्कि नैतिकता के आधार शिक्षण की भी अनुपस्थिति है। डॉ. रेशम सिंह, एवं डॉ. अमित बंजारा ,जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ,पंडित जौहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर का नेतृत्व करते हुए कहा की आज की मेडिकल शिक्षा प्रणाली तंत्र में सुधार हेतु सुझाव पर हमे ध्यान देने की जरूररत है जिसमे…

  • सुरक्षित और अनुकूल वातावरण बनाना जो मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता प्रदान करें।
  • जीवन कौशल, मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को शिक्षा का हिस्सा बनाना।
  • शिक्षकों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील बनाकर छात्रों की सहायता में समर्थ बनाना।
  • रैगिंग पर व्यावहारिक व संवेदनशील दृष्टिकोण एवं त्वरित नैतिक समाधान।
  • छात्रों की आवाज़ सुनने और समाधान देने की एक मजबूत व्यवस्था लागू करना।
  • सहायता समूह,किरण हेल्पलाइन और मनोदर्पण जैसे प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को सहायता प्रदान करना।

अंत में उन्होंने बताया की भारत के भावी डॉक्टर्स को आत्महत्या, मानसिक पीड़ा और रैगिंग से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी नागरिकों, शैक्षणिक संस्थानों, नीति निर्माताओं और अभिभावकों से यह अपील करते हैं कि रैगिंग के प्रति शून्य सहिष्णुता अपनाएं, मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और “सर्वे संतु निरामया” की भावना से चिकित्सा शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए ।

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