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एम्स में 48 घंटे ड्यूटी का नियम लागू, यूडीएफ ने किया स्वागत – मेडिकल स्टूडेंट्स को मिली बड़ी राहत

Healthbhaskar.com: नई दिल्ली, 30 अगस्त 2025 देश की सबसे प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्था एम्स (AIIMS) ने पीजी मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए कार्य समय को लेकर बड़ा निर्णय लिया है। एम्स दिल्ली के एकेडमिक विभाग द्वारा 21 अगस्त को जारी आदेश के अनुसार अब रेजिडेंट डॉक्टरों और पीजी छात्रों को सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे से अधिक ड्यूटी नहीं करनी होगी।

इस आदेश के तहत यह स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी दिन डॉक्टरों को 12 घंटे से ज्यादा लंबी ड्यूटी नहीं दी जा सकती। इसके अलावा, सभी विभागों को अपने-अपने छात्रों और रेजिडेंट डॉक्टरों की ड्यूटी का पूरा रिकॉर्ड बनाना होगा और आवश्यकता पड़ने पर एम्स मुख्यालय को उपलब्ध कराना होगा। यह कदम लंबे समय से रेजिडेंट डॉक्टरों की ‘वर्क टू रूल’ की मांग और उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।

यूडीएफ ने ऐतिहासिक निर्णय का किया स्वागत

यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (UDF) ने इस निर्णय का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए ,यूडीएफ के चेयरपर्सन डॉ. लक्ष्य मित्तल ने कहा की यह निर्णय रेजिडेंट डॉक्टरों और पीजी छात्रों के लिए ऐतिहासिक राहत बताते है तथा एम्स का यह आदेश केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि देशभर के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों के लिए नजीर बनेगा। अब केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन अस्पतालों तथा प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के स्टूडेंट्स भी निर्धारित घंटों की ड्यूटी की मांग कर सकेंगे।

डॉ. मित्तल ने आगे कहा कि यह निर्णय यूडीएफ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का प्रत्यक्ष परिणाम है। एम्स प्रबंधन इस आदेश के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में जवाब देने की स्थिति बना रहा है। हालांकि उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि यह आदेश सिर्फ कागजों पर न रह जाए, बल्कि जमीनी स्तर पर सख्ती से लागू कराया जाए। उन्होंने देशभर के स्थानीय RDA (रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन) से अपील की कि वे इस आदेश के पालन हेतु आवाज उठाएं और “वर्क टू रूल” की मांग को मजबूती से रखें।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका की पृष्ठभूमि

उल्लेखनीय है कि यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (UDF) की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा अधिवक्ता सोनिया माथुर, सत्यम सिंह और नीमा के माध्यम से जनहित याचिका (डायरी नंबर – 211832/2025) दायर की गई है। याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि देशभर में रेजिडेंट डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों का शोषण किया जा रहा है। उन्हें संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करते हुए लगातार 36-40 घंटे तक काम कराया जाता है, जो न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि मरीजों की सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक है। इस याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की 1992 की डायरेक्टिव को लागू करने की अपील की गई है, जिसमें कार्य समय को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए थे।

कोलकाता केस का असर

यह जनहित याचिका अगस्त 2025 में कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज मामले के बाद दायर की गई। उस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने रेजिडेंट डॉक्टरों की लगातार 36 घंटे की ड्यूटी को “अमानवीय” बताया था। सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी ने पूरे देश में बहस छेड़ दी थी कि डॉक्टरों को भी इंसान समझा जाए और उनके कार्य समय को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया जाए। उसी बहस और आंदोलन का परिणाम अब एम्स दिल्ली का यह आदेश माना जा रहा है।

छात्रों और डॉक्टरों की प्रतिक्रियाएं

एम्स और अन्य मेडिकल संस्थानों के छात्रों ने इस फैसले का स्वागत किया है। छात्रों का कहना है कि यह निर्णय उन्हें बेहतर पढ़ाई करने, पर्याप्त नींद लेने और मरीजों को अधिक ध्यान से देखने का अवसर देगा। प्राप्त जानकारी अनुसार पहले लगातार 30 से 36 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती थी। थकान के कारण न तो हम खुद स्वस्थ रह पाते थे और न ही मरीजों पर पूरा ध्यान दे पाते थे। अब 12 घंटे की सीमा तय होने से हम अधिक जिम्मेदारी और फोकस के साथ काम कर पाएंगे। यह आदेश केवल कार्य समय को ही नियंत्रित नहीं करेगा, बल्कि डॉक्टरों के मानसिक स्वास्थ्य और जीवन गुणवत्ता को भी बेहतर बनाएगा। हमें उम्मीद है कि यह नियम देशभर के सभी मेडिकल कॉलेजों में लागू होगा।

डॉ. लक्ष्य मित्तल ने कहा कि एम्स दिल्ली का यह आदेश केवल शुरुआत है,अब यह जिम्मेदारी हर एम्स और मेडिकल कॉलेज के स्थानीय RDA पर है कि वे इस आदेश के अनुपालन के लिए प्रशासन पर दबाव बनाएं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी अपील की कि वह इस आदेश को केवल एम्स तक सीमित न रखे, बल्कि पूरे देश में इसे लागू करने का निर्देश दे।

एम्स दिल्ली का यह निर्णय मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में ऐतिहासिक सुधार की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। लंबे समय से चल रहे संघर्ष और कानूनी लड़ाई के बाद रेजिडेंट डॉक्टरों को सप्ताह में 48 घंटे ड्यूटी का स्पष्ट प्रावधान मिलना डॉक्टरों और मरीजों दोनों के लिए राहत की खबर है। अब देखना यह होगा कि यह आदेश कितनी तेजी और प्रभावी तरीके से पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में लागू होता है।

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