कफ सिरप में अब नहीं छिपेगा जहर — नई नीति से बढ़ेगी बच्चों की सुरक्षा

Healthbhaskar.com: दिल्ली,13 अक्टूबर 2025 देशभर में जहरीले कफ सिरप (Cough Syrup) से हुई बच्चों की मौत की घटनाओं के बाद केंद्र सरकार ने दवा निर्माण नीति (Drug Manufacturing Policy) में बड़ा बदलाव किया है। अब देश में बनने वाले सभी सिरप में डाइइथीलीन ग्लाइकॉल (Diethylene Glycol) और इथीलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol) की मात्रा अधिकतम 0.1 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी।
यह फैसला हाल के महीनों में हुई उन घटनाओं के बाद लिया गया है, जिनमें कई बच्चों की मौत जहरीले सिरप पीने से हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की रिपोर्ट में पाया गया था कि सिरप में अत्यधिक मात्रा में डाइइथीलीन ग्लाइकॉल मौजूद था, जो एक जहरीला रसायन है और बच्चों के किडनी, लिवर और नर्वस सिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
बच्चों की मौत के बाद सरकार सख्त, नई सीमा तय
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने अपने नए निर्देशों में कहा है कि सभी औषधि कंपनियों को उत्पादन से पहले कच्चे रसायनों की अनिवार्य जांच करनी होगी। नई नीति के तहत, डाइइथीलीन ग्लाइकॉल और इथीलीन ग्लाइकॉल की अधिकतम सीमा 0.1% (w/w) रखी गई है। किसी भी उत्पाद में यदि यह मात्रा अधिक पाई जाती है, तो कंपनी पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि औषधि निर्माण इकाइयों में गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं (Quality Control Labs) की नियमित जांच की जाए और रिपोर्ट केंद्र को भेजी जाए।
46.28% नमूनों में डाइइथीलीन ग्लाइकॉल की पुष्टि
मध्यप्रदेश के शिवपुरी और मुरैना जिले में जहरीले कफ सिरप से कई बच्चों की मौत हुई थी। जांच में पाया गया कि संबंधित सिरप में 46.28% तक डाइइथीलीन ग्लाइकॉल पाया गया था, जबकि यह रसायन केवल औद्योगिक उपयोग के लिए सुरक्षित माना जाता है। इस घटना के बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर में दवा निर्माण इकाइयों की जाँच करवाई गयी और उस जाँच के परिणाम चौंकाने वाले थे कई कंपनियों ने बिना रासायनिक परीक्षण के दवाएँ बाजार में सप्लाई कर दी गयी थी।
क्या है डाइइथीलीन ग्लाइकॉल और कैसे करता है नुकसान
डाइइथीलीन ग्लाइकॉल (DEG) एक औद्योगिक सॉल्वेंट है, जो मुख्य रूप से एंटीफ्रीज़, ब्रेक फ्लूड, और प्लास्टिक निर्माण में उपयोग होता है। यह शरीर में पहुंचने पर गुर्दे (Kidney) और तंत्रिका तंत्र (Nervous System) को प्रभावित करता है। इसका अत्यधिक सेवन श्वसन तंत्र में विफलता, बेहोशी, किडनी फेलियर और मृत्यु तक का कारण बन सकता है।
नई नीति से जुड़े प्रावधान
नई दवा नीति में निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल किया गया है जिसमे कच्चे रसायनों की जांच अनिवार्य कर दी गयी है तथा सभी दवा निर्माता कंपनियों को डीईजी और ईजी की जांच प्रमाणित लैब से कराना आवश्यक होगा। उत्पादन के दौरान परीक्षण में प्रत्येक बैच का उत्पादन से पहले और बाद में परीक्षण किया जाएगा। प्रमाणन रिपोर्ट अनिवार्य रूप से लागु कर दी गयी जिसमे दवा कंपनियों को उत्पादन रिपोर्ट CDSCO को ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करनी होगी।अगर इस नियम का उल्लंघन होने पर दोषी कंपनियों के लाइसेंस तत्काल निलंबित होंगे और आपराधिक कार्रवाई भी की जाएगी। भारत से निर्यात की जाने वाली सभी सिरप दवाओं की प्रमाणिकता रिपोर्ट और सुरक्षा परीक्षण अब अनिवार्य रूप से होगा।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय
एम्स (AIIMS) नई दिल्ली के फार्माकोलॉजी विशेषज्ञों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उनका कहना है कि बच्चों के लिए बनी सिरप दवाओं में रसायनों की गुणवत्ता का नियंत्रण जीवन रक्षक साबित होगा। डाइइथीलीन ग्लाइकॉल एक धीमा जहर है। यह शरीर में जमा होकर गुर्दों को धीरे-धीरे नष्ट करता है। नई नीति बच्चों की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम है।
बीडीजी और ईजी की जांच होगी अनिवार्य
नई नीति में स्पष्ट कहा गया है कि हर सिरप के कच्चे ग्लाइकॉल नमूने की BDG (Batch Data Generation) और EG (Ethylene Glycol) Test अनिवार्य होगी। इस परीक्षण से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि दवा में उपयोग किया गया सॉल्वेंट मानव उपयोग के लिए सुरक्षित है।
जनता से अपील — सिरप खरीदते समय सतर्क रहें
औषधि नियंत्रण विभाग ने आम जनता से अपील की है कि किसी भी कंपनी का सिरप खरीदने से पहले उसकी निर्माण तिथि, बैच नंबर और एक्सपायरी डेट अवश्य देखें। यदि किसी दवा से एलर्जी, उल्टी, चक्कर या बेहोशी जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
सरकार का यह कदम न केवल दवा उद्योग में पारदर्शिता बढ़ाएगा, बल्कि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा सुधार साबित होगा। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति के प्रभावी क्रियान्वयन से भारत में दवा निर्माण की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में अभूतपूर्व सुधार आएगा।