मेडिकल स्टूडेंट्स की आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक : यूडीएफ

Healthbhaskar.com: नई दिल्ली, 20 जुलाई 2025 देशभर में मेडिकल स्टूडेंट्स द्वारा आत्महत्या की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिससे छात्र समुदाय, स्वास्थ्य जगत और सामाजिक संगठनों में गहरी चिंता व्याप्त है। यूनाइटेड डॉक्टर फ्रंट (यूडीएफ) ने इन मामलों को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

हाल ही में नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी की बीडीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा ज्योति शर्मा द्वारा 17 जुलाई को आत्महत्या कर लेना इस गंभीर समस्या की ताजा कड़ी है। सुसाइड नोट में उसने अपने शिक्षकों पर मानसिक प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए हैं। यूडीएफ के चेयरपर्सन डॉ. लक्ष्य मित्तल ने दोनों को तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की है और मामले की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता जताई है।

इसके अलावा, मुंबई के जेजे मेडिकल कॉलेज में पीडियाट्रिक विभाग की जेआर थ्री छात्रा द्वारा आत्महत्या के प्रयास का मामला भी प्रकाश में आया है। सोशल मीडिया पर डॉ. बेला वर्मा की भूमिका को लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। यूडीएफ का कहना है कि पीड़िता भय के कारण खुलकर सामने नहीं आ रही, ऐसे में उसे कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाए ताकि वह सुरक्षित वातावरण में अपनी बात कह सके और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो।

यूडीएफ ने मेडिकल शिक्षा प्रणाली में व्याप्त मानसिक दबाव, अनियमित शैक्षणिक वातावरण और अमानवीय कार्यभार को इन घटनाओं का मूल कारण बताया है। संगठन ने कहा कि रेजिडेंट डॉक्टरों से लगातार अत्यधिक घंटों तक काम कराना, बिना मानसिक परामर्श के दबाव झेलते रहना और फैकल्टी का असंवेदनशील रवैया एक विषाक्त अकादमिक माहौल पैदा करता है।

यूडीएफ ने सरकार और मेडिकल काउंसिल से माँग की है ,जिसमे सभी मेडिकल कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सेवाएं अनिवार्य की जाएं। आत्महत्या की घटनाओं या प्रयासों में प्रशासनिक जवाबदेही तय की जाए। डीन, प्रिंसिपल, विभागाध्यक्ष और दोषी फैकल्टी की भूमिका की जांच कर सख्त दंड दिया जाए।रेजिडेंट्स की वर्किंग ऑवर्स को नियमन में लाया जाए और मानसिक प्रताड़ना से संबंधित मामलों को संवेदनशीलता से निपटाया जाए।

यूडीएफ ने यह भी कहा कि वर्तमान में जब कोई मेडिकल छात्र आत्महत्या करता है, तो वह महज एक संख्या बनकर रह जाता है क्योंकि कोई जिम्मेदारी तय नहीं होती। इससे न केवल पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिलता, बल्कि शैक्षणिक संस्थानों की निष्क्रियता भी उजागर होती है।

इस पूरे मुद्दे पर यूडीएफ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर न्याय की मांग की है, जिससे मेडिकल शिक्षा में सुधार और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा की दिशा में एक ठोस पहल की जा सके।

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