संस्थागत सुधार की ओर ऐतिहासिक कदम : मेडिकल छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य रक्षा और गरिमा को सर्वोच्च न्यायालय ने दी संवैधानिक मान्यता

Healthbhaskar.com: रायपुर, 29 जुलाई 2025 देशभर के मेडिकल संस्थानों में छात्रों की आत्महत्याओं को केवल आँकड़ों या अखबारी सुर्खियों तक सीमित समझना एक गंभीर भूल होगी। यह एक गहरी और जटिल संस्थागत समस्या का संकेत है, जो आधुनिक चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था में ब्रिटिश कालीन कठोरता, जातिगत भेदभाव और अमानवीय प्रशिक्षण प्रणाली का परिणाम है।
JDA जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन, रायपुर के अध्यक्ष डॉ. रेशम सिंह और सचिव डॉ. अमित बंजारा ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत किया है, जिसमें 26 जुलाई 2025 को जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार, जीवन और सम्मान के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का अभिन्न हिस्सा है। यह निर्णय सुखदेव शाह बनाम आंध्रप्रदेश राज्य प्रकरण में दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी चिकित्सा संस्थाओं में छात्रों के हित एवं मानव केंद्रित सुधारों की आवश्यकता पर ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने मेडिकल शिक्षा संस्थानों में व्यवहारिक बदलाव और कार्य घंटों में संतुलन की ओर टास्क फोर्स गठित करने का निर्देश दिया है। JDA जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन, रायपुर के अध्यक्ष डॉ. रेशम सिंह और सचिव डॉ. अमित बंजारा ने कहा कि 1992 की यूनिफ़ॉर्म रेजीडेंसी स्कीम के तहत अधिकतम ड्यूटी घंटे 12 घंटे प्रति दिन एवं सप्ताहिक कार्य अवधी 48 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए तथा सप्ताह में एक अवकाश अनिवार्य रूप से होना चाहिए और 20 वार्षिक अवकाश की स्वीकृति, जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) पूरे भारत में सभी मेडिकल कॉलेजों में आवश्यक रूप से लागू होना चाहिए। उन्होंने यह भी दोहराया कि शिक्षा के नाम पर छात्रों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना, जातिगत भेदभाव करना या अनावश्यक मानसिक दबाव देना अब संविधान, कानून और मानवता के विरुद्ध है।
मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 की धारा 18 सभी के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी देती है, जबकि धारा 115 आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करती है। सर्वोच्च न्यायालय ने UN Conventions (ICESCR, CRPD) का भी हवाला देते हुए भारत को मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए संवैधानिक रूप से प्रतिबद्ध बताया गया है, जिसका उल्लेख दोनों महत्वपूर्ण प्रावधानों धारा 18 और धारा 115 तथा इनके IPC (भारतीय दंड संहिता) से संबंध को सरल भाषा में समझते हैं: धारा 18 मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार सुरक्षित रखती है जिसके अंतर्गत हर व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार है, चाहे उसकी आयु, लिंग, धर्म, जाति, आर्थिक स्थिति या मानसिक बीमारी की अवस्था कुछ भी हो।
- राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी को सस्ती, सुलभ, गुणवत्तापूर्ण और समान मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराए।
- मरीज को इलाज, दवा, पुनर्वास सेवाएं, समुचित अस्पताल और विशेषज्ञों तक पहुंचने का अधिकार है।
- यह मानवाधिकार की अवधारणा पर आधारित है और यह सुनिश्चित करता है कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार मिले।
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 की धारा 115 जिसके अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है, तो माना जाएगा कि वह मानसिक तनाव या बीमारी से ग्रसित था। ऐसे में उसे सजा नहीं दी जाएगी, बल्कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी कि उसे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उपचार मुहैया कराए।
JDA रायपुर के अध्यक्ष डॉ. रेशम सिंह और सचिव डॉ. अमित बंजारा ने कहा कि संस्थागत बुराइयों से भी मुक्ति मिलनी चाहिए जैसे सीखने के नाम पर सार्वजनिक अपमान ,जातिगत भेदभाव और उपेक्षा ,संस्थागत विषाक्तता और दबाव पीजी छात्रों में चल रही हिंसक, मौन शोषण की परंपरा खत्म होनी चाहिए। सम्मान, गरिमा और सुरक्षित मानसिक वातावरण ,संवेदनशील, मानवीय और संरचनात्मक रूप से स्वस्थ मेडिकल संस्थान अब हर छात्र का अधिकार है। JDA ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा की यह केवल कानून नहीं, एक ऐतिहासिक सामाजिक सुधार की शुरुआत है, जो भविष्य के डॉक्टरों को न केवल ज्ञानवान, बल्कि भावनात्मक रूप से भी सशक्त बनाएगा।