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दवा से मौतों का मामला : मेडिकल सिस्टम पर सवाल, डॉक्टर की गिरफ्तारी ने उठाया नैतिक संकट

Healthbhaskar.com:  रायपुर 06 अक्टूबर 2025 प्रदेश में दूषित सिरप से अब तक 16 बच्चों की मौत ने पूरे देश के चिकित्सा जगत को झकझोर दिया है। इस मामले में एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया है, जिसने कथित रूप से प्रतिबंधित दवा लिखी थी। फार्मा कंपनी पर एफआईआर दर्ज की गई है और जांच का दायरा अब छह राज्यों तक बढ़ा दिया गया है। यह मामला केवल एक डॉक्टर या कंपनी तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की पूरी मेडिकल एथिक्स (Medical Ethics) और फार्मास्युटिकल रेगुलेशन (Pharmaceutical Regulation) प्रणाली पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है।

इस घटना ने भारत के मेडिकल छात्रों, डॉक्टरों और संगठनों को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है। डॉक्टर का मुख्य उद्देश्य “जीवन रक्षा” है, लेकिन जब इलाज के बजाय प्रॉफिट-आधारित प्रिस्क्रिप्शन (Profit-based Prescription) को बढ़ावा मिलता है, तो यह चिकित्सा पेशे की गरिमा को धूमिल करता है।

भारत के प्रमुख मेडिकल स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (Medical Students Organization of India) और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि देश में मेडिकल शिक्षा और फार्मा कंपनियों के बीच “अनैतिक गठजोड़” का पर्दाफाश होना जरूरी है। मध्य प्रदेश के उज्जैन, जबलपुर और भोपाल में जांच टीमों ने रविवार को कई फार्मा वितरकों और क्लिनिकों पर छापे मारे गए है। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि कंपनी ने बिना उचित Drug Safety Clearance के बच्चों को दी जाने वाली सिरप की आपूर्ति की थी।

यह मामला देश में Pharmacovigilance System की कमजोरी को उजागर करता है। आज भी अधिकांश डॉक्टर बिना Evidence-Based Guidelines के दवा लिखते हैं, जिससे Adverse Drug Reactions (ADR) के मामले बढ़ते जा रहे हैं। देशभर के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों ने मांग की है कि मेडिकल शिक्षा में “नैतिक चिकित्सा (Ethical Medicine)” और “रोगी अधिकार (Patient Rights)” जैसे विषयों को अनिवार्य किया जाना चाहिए। इंडियन मेडिकल स्टूडेंट्स एसोसिएशन (IMSA) के प्रतिनिधियों ने कहा कि जब तक डॉक्टर बनने की प्रक्रिया में नैतिकता को मजबूत आधार नहीं मिलेगा, तब तक ऐसे हादसे रुकेंगे नहीं।

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा संचालित Competency-Based Medical Education (CBME) में भी अब Medical Ethics, Pharma Influence, और Prescription Auditing को शामिल करने की सिफारिश की जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में कई जांचों में सामने आया है कि कुछ फार्मा कंपनियां डॉक्टरों को महंगे गिफ्ट, विदेश यात्राएं और आर्थिक प्रोत्साहन देकर अपनी दवाओं का प्रचार करवाती हैं। यही प्रवृत्ति “प्रिस्क्रिप्शन-ड्रिवन मार्केटिंग (Prescription Driven Marketing)” को जन्म देती है। भारत में दवा बाजार का 80% हिस्सा डॉक्टरों की सिफारिशों पर निर्भर है। जब नैतिकता और व्यावसायिक हित टकराते हैं, तो नुकसान हमेशा मरीज का होता है। यह वही स्थिति है, जिसे गांधीजी ने “मनुष्य की आत्मा पर व्यापारिक नियंत्रण” कहा था। स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय नहीं, सेवा का माध्यम होना चाहिए।

स्वास्थ्य संगठनों की भूमिका और जिम्मेदारी

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA), नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) और हेल्थ मिनिस्ट्री ने इस मामले पर अलग-अलग स्तर पर जांच टीमें गठित की हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट कहा है कि रोगी सुरक्षा सर्वोपरि है, दोषियों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। वहीं मेडिकल छात्रों ने सोशल मीडिया पर #JusticeForPatients और #EthicalMedicineNow जैसे अभियान शुरू किए हैं, जिनमें हजारों युवा डॉक्टर इस अभियान में शामिल हुए है।

स्वास्थ्य केवल अस्पताल या सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज की भी है। जब तक नागरिक सुरक्षित दवा (Safe Medicine) और पारदर्शिता (Transparency) की मांग नहीं करेंगे, तब तक सिस्टम में सुधार नहीं होगा। सही इलाज, प्रमाणित दवा और जागरूक डॉक्टर,रोगी का अधिकार है। इस दिशा में जनजागरूकता अभियान और सामुदायिक सहभागिता ही वास्तविक बदलाव ला सकती है।

केंद्र ने दिए सख्त निर्देश

केंद्र सरकार ने राज्य स्वास्थ्य विभागों को निर्देश दिया है कि सभी सस्पेक्टेड सिरप बैच (Suspected Syrup Batch) को तत्काल सील किया जाए और बच्चों के इलाज में प्रयोग होने वाली दवाओं की विशेष जांच की जाए। Drug Controller General of India (DCGI) ने 6 राज्यों में निरीक्षण दल भेजे गए है। यह कदम भारत की Drug Surveillance Mechanism को और मजबूत करने की दिशा में अहम है।

इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि भारत के मेडिकल सिस्टम को केवल तकनीक नहीं, बल्कि नैतिक दिशा (Moral Direction) की जरूरत है। डॉक्टर, फार्मा कंपनियां और शैक्षणिक संस्थान यदि मिलकर पारदर्शिता और जिम्मेदारी की भावना से काम करें, तभी “जीवन रक्षा” अपने सच्चे अर्थों में संभव हो पायेगी।

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